दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर, मध्य पूर्व के युद्धग्रस्त देश यमन की एक जेल की अंधेरी कोठरी में, भारत की एक बेटी मौत की दहलीज पर खड़ी अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया को यमनी नागरिक तलार अब्दो महदी की हत्या के जघन्य आरोप में फांसी की सज़ा सुनाई गई है। यह तारीख, 16 जुलाई, उसकी किस्मत का फैसला करने वाली है – उसके पास अब अपनी जान बचाने के लिए केवल दो दिन का समय शेष है। यह सिर्फ एक कानूनी खबर नहीं, बल्कि एक माँ की अपने बच्चे से जुदा होने की पीड़ा, एक बेटी की अपनी माँ को बचाने की व्याकुल पुकार, और एक इंसान की मौत के सामने खड़ी आखिरी उम्मीद की मार्मिक लड़ाई है। क्या भारत सरकार, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, और न्यायिक हस्तक्षेप के संयुक्त प्रयासों से उसकी जान बचाई जा सकती है? यमनी कोर्ट के उन दस्तावेजों में ऐसा क्या लिखा है जिसने निमिषा की किस्मत का फैसला कर दिया? और अब इस अत्यंत नाजुक और समयबद्ध मोड़ पर कौन-कौन से आखिरी प्रयास किए जा रहे हैं? आइए, इस हृदय विदारक और जटिल मामले की गहराई में उतरते हैं, ताकि आपको इस हाई-प्रोफाइल और संवेदनशील मामले की हर अहम जानकारी मिल सके।
कौन है निमिषा प्रिया और क्या है पूरा मामला? – एक प्रवासी का दुखद अंत!
निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले के इडप्पला की रहने वाली एक युवा नर्स है। अपने परिवार के लिए बेहतर आर्थिक भविष्य की तलाश में, वह हजारों अन्य भारतीयों की तरह यमन जैसे मध्य-पूर्वी देश में प्रवासी मजदूर के रूप में गई थी। यह पूरा दुखद और जटिल मामला वर्ष 2017 का है, जब निमिषा पर यमनी नागरिक तलार अब्दो महदी की हत्या का आरोप लगा।
घटनाक्रम का विस्तृत विश्लेषण:
- यमन में रोजगार और अवैध क्लीनिक का जाल: निमिषा यमन में एक नर्स के रूप में ईमानदारी से काम कर रही थी। हालांकि, यमन में काम करने और वहां के जटिल नियमों से अनभिज्ञ, या शायद बेहतर कमाई की लालच में, उसने तलार अब्दो महदी नामक एक यमनी नागरिक के साथ मिलकर अपना एक छोटा सा क्लीनिक शुरू करने का फैसला किया। यह क्लीनिक दुर्भाग्यवश, यमन की स्थानीय परिस्थितियों और सख्त कानूनों के कारण कानूनी रूप से वैध नहीं था, क्योंकि निमिषा के पास यमन में स्वयं का क्लीनिक चलाने का आवश्यक लाइसेंस या प्राधिकरण नहीं था। यहीं से समस्याओं की शुरुआत हुई।
- आर्थिक विवाद, शोषण और पासपोर्ट जब्ती: आरोप है कि तलार अब्दो महदी ने इस नाजायज क्लीनिक के बहाने निमिषा का आर्थिक शोषण करना शुरू कर दिया। उसने कथित तौर पर निमिषा का पासपोर्ट छीन लिया, जो प्रवासियों के साथ अक्सर होने वाले शोषण का एक आम तरीका है। इतना ही नहीं, तलार महदी निमिषा को उसकी कमाई का हिस्सा देने से भी इनकार कर रहा था और उसे लगातार शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था। निमिषा का परिवार और उसके समर्थक लगातार यह बताते रहे हैं कि तलार महदी ने निमिषा को एक तरह से अपने कब्जे में रखा हुआ था और उसे बंधक जैसी स्थिति में रखा गया था, जिससे वह अत्यधिक मानसिक तनाव में थी।
- दवा के अति प्रयोग से मौत का आरोप: 2017 में, इस मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से मुक्ति पाने की हताशा में, निमिषा ने कथित तौर पर तलार अब्दो महदी को बेहोश करने के लिए उसे कुछ दवाएं दीं। निमिषा का एकमात्र इरादा उसे अस्थायी रूप से बेहोश करना था ताकि वह अपना पासपोर्ट वापस ले सके, यमन छोड़ सके और इस शोषण से मुक्ति पा सके। दुर्भाग्य से, आरोप है कि यह दवा अत्यधिक मात्रा में दे दी गई, या दवा का प्रभाव घातक निकला, जिससे तलार अब्दो महदी की मृत्यु हो गई। निमिषा ने अपने बचाव में हमेशा यह दावा किया है कि उसका इरादा तलार को जान से मारने का बिल्कुल नहीं था, बल्कि वह केवल आत्मरक्षा में और अपनी मुक्ति के लिए उसे बेहोश करना चाहती थी।
- गिरफ्तारी, मुकदमा और निचली अदालत का फैसला: तलार महदी की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद, निमिषा को यमनी अधिकारियों द्वारा तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। यमन में एक लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद, एक निचली अदालत ने 2020 में निमिषा को हत्या का दोषी पाया और यमनी कानून के तहत उसे फांसी की सज़ा सुनाई।
यमनी कोर्ट के दस्तावेजों में क्या लिखा है? – ‘किसास’ और ‘ब्लड मनी’ का जटिल पेच
यमनी कानून, जो काफी हद तक इस्लामी शरीयत कानून पर आधारित है, ऐसे गंभीर मामलों में ‘किसास’ (Qisas) या ‘ब्लड मनी’ (Diyya) का महत्वपूर्ण प्रावधान करता है। यही प्रावधान निमिषा के मामले में सबसे बड़ा और जटिल कानूनी पेच है, जिसने उसकी जान बचाने की राह में अभूतपूर्व बाधाएं खड़ी की हैं।
- किसास (समान बदला / Law of Retribution): यमनी कानून के तहत, हत्या जैसे गंभीर मामलों में मृतक के परिवार को अपराधी को फांसी दिए जाने या ‘किसास’ (समान बदला लेने का अधिकार) की मांग करने का कानूनी अधिकार होता है। यह एक गंभीर मांग है जो परिवार को न्याय दिलाने के लिए दी जाती है।
- ब्लड मनी (दिया / Diyya): ‘किसास’ के विकल्प के रूप में, मृतक का परिवार अपराधी को माफ करने और उसके बदले में एक निश्चित आर्थिक मुआवजा (जिसे ‘ब्लड मनी’ या ‘दिया’ कहा जाता है) स्वीकार करने का विकल्प चुन सकता है। यदि परिवार ब्लड मनी स्वीकार कर लेता है, तो अपराधी की जान बख्श दी जाती है और उसे फांसी की सज़ा से आजीवन कारावास या कुछ वर्षों की सजा में बदल दिया जाता है। यह अक्सर मानवीय करुणा और समाधान का एक मार्ग माना जाता है।
- कोर्ट के दस्तावेज और परिवार की अटल मांग: यमनी कोर्ट के दस्तावेजों और फैसले के अनुसार, तलार अब्दो महदी के परिवार ने निमिषा प्रिया के लिए ‘किसास’ (यानी, फांसी) की स्पष्ट और अटल मांग की है। उन्होंने अब तक किसी भी ब्लड मनी के प्रस्ताव को स्वीकार करने से दृढ़ता से इनकार कर दिया है। यही निमिषा की जान बचाने की राह में सबसे बड़ी और लगभग दुर्गम बाधा है। यमनी न्याय प्रणाली में, पीड़ित परिवार की सहमति को अंतिम और सर्वोच्च माना जाता है, और चूंकि उन्होंने ब्लड मनी से इनकार कर दिया है, इसलिए निचली अदालत द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को ऊपरी अदालतों ने भी बरकरार रखा है।
- प्रयासों की जटिलता और विफलता: भारत सरकार और विभिन्न भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने मृतक के परिवार को ब्लड मनी के लिए राजी करने के कई अथक प्रयास किए हैं, लेकिन वे सभी असफल रहे हैं। परिवार की अटल मांग के आगे यमनी कानूनी प्रक्रिया में बदलाव करना या उस पर कोई प्रभाव डालना बेहद मुश्किल हो जाता है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, परिवार ने पहले 70 मिलियन यमनी रियाल (लगभग 2 करोड़ रुपये) की अस्थायी मांग की थी, लेकिन बाद में उन्होंने किसी भी भुगतान को लेने से साफ इनकार कर दिया, जिससे समस्या और भी बढ़ गई।
दो दिन बाद फांसी… क्या अब भी बचाई जा सकती है निमिषा की जान? – एक जिंदगी बचाने की आखिरी उम्मीद!
निमिषा प्रिया की फांसी की तारीख 16 जुलाई तय है, जिसका अर्थ है कि उसके पास अपनी जिंदगी बचाने के लिए अब केवल दो दिन का अत्यंत सीमित और कीमती समय बचा है। इस अत्यंत नाजुक और लगभग अंतिम समय में, उसकी जान बचाने के लिए युद्धस्तर पर आखिरी और बेताब प्रयास किए जा रहे हैं।
- राजनयिक और मानवीय प्रयास: भारतीय दूतावास (जो यमन में मौजूदा संघर्ष के कारण जिबूती से कार्य करता है) और भारत का विदेश मंत्रालय लगातार यमनी अधिकारियों, स्थानीय जनजातीय नेताओं और सबसे महत्वपूर्ण, मृतक के परिवार के सदस्यों के साथ संपर्क में हैं। राजनयिक स्तर पर यह अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है कि किसी तरह परिवार को ब्लड मनी स्वीकार करने के लिए राजी किया जा सके या कम से कम फांसी को कुछ समय के लिए टाला जा सके। यह बातचीत बेहद संवेदनशील, जटिल और चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यमन में केंद्रीय सत्ता की कमजोर स्थिति और जनजातीय कानूनों का प्रभाव बहुत अधिक है।
- ब्लड मनी जुटाने का वैश्विक अभियान: निमिषा की जान बचाने के लिए केरल में उसके परिवार, विभिन्न प्रवासी भारतीय संगठनों और नागरिक समाज समूहों द्वारा ‘ब्लड मनी’ जुटाने का एक व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि, यह अभियान इसलिए और जटिल हो जाता है क्योंकि मृतक के परिवार ने अभी तक कोई निश्चित या अंतिम राशि नहीं बताई है, और वे किसी भी कीमत पर ब्लड मनी लेने से ही इनकार कर रहे हैं, ‘किसास’ की मांग पर अड़े हुए हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय अपील और मानवीय हस्तक्षेप: निमिषा के मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रमुखता से उठाया जा रहा है। विभिन्न मानवाधिकार संगठन, जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल, और भारतीय समुदाय के लोग यमनी सरकार, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों से निमिषा की फांसी माफ करने और मानवीय आधार पर उसके मामले पर विचार करने की मार्मिक अपील कर रहे हैं।
- अंतिम कानूनी और संवैधानिक विकल्प: यमन में फांसी की सज़ा के बाद भी कुछ कानूनी और संवैधानिक विकल्प हो सकते हैं, जैसे यमनी राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान या न्यायिक समीक्षा का एक अंतिम अवसर। हालांकि, यह तभी संभव है जब पीड़ित परिवार ‘किसास’ पर अड़ा न रहे या कोई विशेष राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप हो। समय बेहद कम है, इसलिए हर संभव कानूनी, राजनयिक और मानवीय रास्ता टटोला जा रहा है।
- निमिषा की बेटी की मार्मिक और हृदय विदारक अपील: निमिषा की एक छोटी बेटी है जो अपनी माँ को खोने के डर से लगातार अपनी माँ को बचाने की मार्मिक अपील कर रही है। उसकी हृदय विदारक पुकार ने इस मामले को और भी भावुक बना दिया है, जिससे दुनियाभर के लोगों की संवेदनाएं इससे जुड़ गई हैं।
मानवीय पहलू और नैतिक दुविधा – न्याय और करुणा के बीच संतुलन
यह मामला सिर्फ कानूनी दांव-पेच से कहीं बढ़कर है; यह मानवीय और नैतिक दुविधाओं से भी भरा है। एक तरफ तलार अब्दो महदी का परिवार है जिसने अपने प्रियजन को खोया है और यमनी कानून के तहत न्याय की मांग कर रहा है। दूसरी ओर निमिषा प्रिया है, जो दावा करती है कि उसने आत्मरक्षा में और अनजाने में एक घातक गलती की, और अब मौत की सज़ा का सामना कर रही है।
- आत्मरक्षा बनाम इरादतन हत्या: निमिषा ने अपने पूरे मुकदमे के दौरान हमेशा यह दावा किया है कि तलार महदी उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था, उसका आर्थिक शोषण कर रहा था, और उसे बंधक बनाए हुए था। उसने उसे केवल बेहोश करने की कोशिश की थी ताकि वह इस नारकीय स्थिति से बच सके। यह एक जटिल कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़ा करता है कि क्या यह वास्तव में आत्मरक्षा का मामला था, या एक इरादतन हत्या। यमनी कोर्ट ने उसके आत्मरक्षा के दावे को स्वीकार नहीं किया है।
- प्रवासी श्रमिकों का शोषण: निमिषा का मामला यमन जैसे युद्धग्रस्त और अस्थिर देशों में भारतीय कामगारों को अक्सर सामना करने वाले शोषण, बंधुआ मजदूरी जैसी स्थितियों और कानूनी सुरक्षा के अभाव की दुखद वास्तविकता को भी उजागर करता है। उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते हैं, उन्हें बंधक जैसी स्थिति में रखा जाता है, और उन्हें अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
एक जिंदगी बचाने की आखिरी और बेताब दौड़
निमिषा प्रिया का मामला भारतीय न्यायपालिका, कूटनीति और वैश्विक मानवाधिकार संगठनों के लिए एक बड़ी और जटिल चुनौती है। दो दिन का समय बहुत कम है, लेकिन जैसा कि कहा जाता है, “जब तक सांस है, तब तक आस है।” भारत सरकार, भारतीय समुदाय, और निमिषा के परिवार द्वारा किए जा रहे अंतिम और अथक प्रयास ही उसकी जिंदगी बचा सकते हैं। यह मामला न केवल एक व्यक्ति की जान बचाने की लड़ाई है, बल्कि विदेशों में काम कर रहे लाखों भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, उनके मानवाधिकारों और उनके सामने आने वाली अप्रत्याशित चुनौतियों को भी गंभीर रूप से उजागर करता है।
हर कोई उम्मीद कर रहा है कि कोई चमत्कार होगा, कोई मानवीय हस्तक्षेप होगा, और निमिषा प्रिया को यमन की जेल से जीवनदान मिलेगा। इस मामले ने एक बार फिर विदेश में काम करने वाले प्रवासियों की कमजोर स्थिति और उन पर पड़ने वाले स्थानीय कानूनों और सांस्कृतिक प्रभावों पर गंभीरता से सोचने को मजबूर कर दिया है। दुनिया भर में मानवीय करुणा और न्याय की गुहार लगाई जा रही है।




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