पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन के संबंधों में जो कड़वाहट और तनाव आया है, वह किसी से छिपा नहीं है। इस पृष्ठभूमि में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का चीन दौरा कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। गलवान के खूनी संघर्ष के बाद यह उनकी चीन की धरती पर पहली यात्रा थी, जिसने कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। एक तरफ जहां उन्हें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लेना था, वहीं दूसरी ओर उनकी यात्रा का फोकस भारत के लिए पारंपरिक रूप से बेहद अहम और आस्था से जुड़ी कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भी था। लेकिन इन सब से बढ़कर, सबकी निगाहें इस बात पर टिकी थीं कि जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से हुई अपनी मुलाकात के दौरान किन मुद्दों पर बात की? क्या दोनों नेताओं के बीच गलवान के बाद उपजे सीमा विवाद और तनाव को कम करने को लेकर कोई ठोस चर्चा हुई? क्या इस हाई-प्रोफाइल मुलाकात से भारत और चीन के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी या संबंधों में और तल्खी आएगी? आइए, इस पूरे घटनाक्रम का गहराई से विश्लेषण करते हैं ताकि आपको इस संवेदनशील दौरे की हर अहम जानकारी और उसके संभावित प्रभावों को समझने में मदद मिल सके।
SCO समिट: क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और भारत की मुखर भूमिका
एस. जयशंकर की चीन यात्रा का प्राथमिक और घोषित एजेंडा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेना था। SCO एक प्रभावशाली क्षेत्रीय समूह है जिसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं। इस मंच का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना है। यह समूह आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत के लिए SCO का रणनीतिक महत्व: भारत SCO का एक सक्रिय और प्रतिबद्ध सदस्य है और इस मंच को क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम मानता है। भारत के लिए यह मंच न केवल क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने विचार रखने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ बहुपक्षीय मंच पर संवाद करने का भी एक जरिया है, भले ही द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हों।
- बैठक में भारत का एजेंडा और जयशंकर का बयान: इस बैठक में जयशंकर ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत का मजबूत पक्ष रखा। उन्होंने विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद के खतरे को पुरजोर तरीके से उठाया और सभी सदस्य देशों से इसके खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का शिकार रहा है और इसे एक गंभीर चुनौती मानता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने क्षेत्रीय आर्थिक विकास, कनेक्टिविटी और आपसी सहयोग पर भी जोर दिया। बैठक में सदस्य देशों ने अफगानिस्तान की स्थिति, यूक्रेन युद्ध के क्षेत्रीय प्रभाव, ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा जैसे वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया। जयशंकर ने इन मुद्दों पर भारत की राय और दृष्टिकोण को स्पष्टता से साझा किया, जो भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है।
मानसरोवर यात्रा: आस्था का पथ, कूटनीति का सेतु और मानवीय संवेदना
भारत के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थयात्रा है। हर साल हजारों भारतीय श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा पर जाते हैं, जो पारंपरिक रूप से चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से होकर गुजरती है।
- यात्रा में बाधाएं और भारत की निरंतर चिंता: पिछले कुछ वर्षों में, विशेषकर गलवान के बाद सीमा पर तनाव और अन्य भू-राजनीतिक कारणों से मानसरोवर यात्रा में कई बार बाधाएं आई हैं। कुछ मार्गों को बंद कर दिया गया है, जिससे भारतीय श्रद्धालुओं को काफी परेशानी और निराशा हुई है। जयशंकर की इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील पहलू मानसरोवर यात्रा को सुचारू रूप से फिर से शुरू करने और व्यवस्थित तरीके से संचालित करने को लेकर चीन के साथ बातचीत करना भी था। भारत उम्मीद कर रहा है कि चीन इस साल और भविष्य में इस यात्रा को सुरक्षित, व्यवस्थित और निर्बाध तरीके से आयोजित करने में सहयोग करेगा, ताकि भारतीय श्रद्धालुओं की आस्था का सम्मान हो सके।
- आस्था और कूटनीति का संवेदनशील संगम: मानसरोवर यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि भारत और चीन के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और मानवीय संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण जरिया भी है। इस यात्रा पर कूटनीतिक रूप से फोकस करके जयशंकर ने न केवल लाखों भारतीय श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान किया, बल्कि चीन को यह संदेश भी दिया कि मानवीय और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को द्विपक्षीय तनाव से अलग रखा जाना चाहिए। यह कूटनीति के माध्यम से ‘पीपल-टू-पीपल’ संबंधों को बनाए रखने का एक प्रयास है।
गलवान के बाद पहली चीन यात्रा: तनाव के साये में संवाद की उम्मीद
यह दौरा इसलिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जून 2020 में गलवान घाटी में हुई उस हिंसक झड़प के बाद एस. जयशंकर की पहली चीन यात्रा है, जिसमें दोनों ओर के सैनिकों को जान गंवानी पड़ी थी। उस घटना के बाद से भारत और चीन के संबंध काफी तनावपूर्ण रहे हैं, और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध अभी भी पूरी तरह से हल नहीं हुआ है। दोनों देशों के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक स्तर की बातचीत भी अब तक कोई निर्णायक समाधान नहीं निकाल पाई है।
- तनाव कम करने की धीमी उम्मीद: जयशंकर की इस यात्रा को दोनों देशों के बीच संवाद की प्रक्रिया को फिर से सक्रिय करने और सीमा पर तथा द्विपक्षीय संबंधों में उपजे तनाव को कम करने की दिशा में एक संभावित कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह उम्मीद करना जल्दबाजी होगी कि इस एक यात्रा से ही सभी मतभेद और सीमा विवाद तुरंत दूर हो जाएंगे, लेकिन यह निश्चित रूप से बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का एक अवसर प्रदान करती है।
- संवादहीनता तोड़ना जरूरी: लंबे समय तक संवादहीनता किसी भी जटिल समस्या का समाधान नहीं होती, बल्कि अक्सर उसे और बढ़ा देती है। जयशंकर की यह यात्रा दोनों पक्षों को एक बार फिर आमने-सामने बैठकर अपनी-अपनी चिंताओं और दृष्टिकोणों को स्पष्ट रूप से साझा करने का मौका देती है। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि भारत बातचीत के लिए तैयार है, बशर्ते वह सम्मानजनक और रचनात्मक हो।
चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात: पर्दे के पीछे के गहरे मायने
SCO समिट के इतर, एस. जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी द्विपक्षीय मुलाकात की। उपराष्ट्रपति हान झेंग चीन के राजनीतिक पदानुक्रम में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली स्थान रखते हैं, और उनकी गिनती शी जिनपिंग के करीबी नेताओं में होती है। इस मुलाकात ने कूटनीतिक हल्कों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि दोनों नेताओं के बीच किन संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई।
- आधिकारिक जानकारी का अभाव और अटकलें: आधिकारिक तौर पर इस मुलाकात के बारे में बहुत कम विस्तृत जानकारी साझा की गई है, जो अक्सर ऐसी उच्च-स्तरीय बैठकों में होता है। आमतौर पर, ऐसे अवसरों पर द्विपक्षीय संबंधों, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सामान्य चर्चा होने की बात कही जाती है। हालांकि, पर्दे के पीछे की बातचीत अधिक गहन होती है।
- संभावित बातचीत के प्रमुख मुद्दे (कूटनीतिक विश्लेषण के अनुसार): हालांकि आधिकारिक बयानों में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन कूटनीतिक जानकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुलाकात के दौरान निम्नलिखित महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों पर गहन बातचीत होने की प्रबल संभावना है:
- सीमा पर वर्तमान तनाव और डी-एस्केलेशन: गलवान घाटी की घटना के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जो सैन्य गतिरोध बना हुआ है, वह निश्चित रूप से बातचीत के एजेंडे में शीर्ष पर रहा होगा। भारत लगातार चीन से सीमा पर सैनिकों की पूर्ण वापसी (डिसएंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन) और शांति व यथास्थिति बनाए रखने की मांग करता रहा है। यह भारत के लिए ‘सामान्य संबंध’ बहाल करने की पहली शर्त है।
- द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन: भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध बेहद मजबूत और विशाल हैं, लेकिन भारत लगातार चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे (ट्रेड डेफिसिट) को लेकर अपनी चिंताएं जताता रहा है। इस मुलाकात में भारतीय वस्तुओं के लिए चीनी बाजारों तक अधिक पहुंच और व्यापार असंतुलन को कम करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई होगी।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे और भू-राजनीतिक सहयोग/मतभेद: दोनों नेताओं ने यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आर्थिक स्थिति, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग जैसे साझा हित के अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपने विचार साझा किए होंगे। चीन और भारत दोनों ही विकासशील देश हैं और कई वैश्विक मुद्दों पर उनके हित समान हैं।
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): चीन का महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) भारत के लिए एक चिंता का विषय रहा है, खासकर जब से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है। इस मुद्दे पर भी भारत ने अपनी चिंताओं को दोहराया होगा।
- मानसरोवर यात्रा की व्यवस्थाएं और भविष्य की योजनाएं: जैसा कि पहले बताया गया है, मानसरोवर यात्रा को सुचारू रूप से संचालित करने और भविष्य में श्रद्धालुओं के लिए इसे और अधिक सुलभ बनाने को लेकर भी विस्तृत बातचीत महत्वपूर्ण रही होगी।
- क्या गलवान पर हुई सीधी और निर्णायक बात? यह सवाल सबसे अहम है कि क्या जयशंकर और चीनी उपराष्ट्रपति के बीच गलवान घाटी की घटना और सीमा पर तनाव को लेकर कोई सीधी, स्पष्ट और विस्तृत बातचीत हुई? अगर ऐसा हुआ है, और कोई ठोस प्रगति हुई है, तो इसके क्या नतीजे निकले, यह फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया गया है। हालांकि, इस उच्च-स्तरीय मुलाकात का होना ही यह संकेत देता है कि दोनों पक्ष बातचीत के रास्ते पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहते और भविष्य में भी संवाद की संभावना बनी हुई है।
क्या बदलेगी रिश्तों की दिशा? एक नाजुक मोड़ पर भारत-चीन संबंध
एस. जयशंकर की यह चीन यात्रा ऐसे समय में हुई है जब दोनों देशों के बीच संबंध एक बेहद नाजुक मोड़ पर हैं। गलवान की घटना ने द्विपक्षीय विश्वास को गहरा आघात पहुंचाया है और सीमा पर स्थिति अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। ऐसे में इस एक यात्रा से तुरंत किसी बड़े, नाटकीय बदलाव या रातोंरात संबंधों के सामान्य होने की उम्मीद करना शायद जल्दबाजी होगी।
- धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति: कूटनीतिक रिश्ते धीरे-धीरे बनते और सुधरते हैं, खासकर तब जब उनमें इतना गहरा तनाव आ चुका हो। यह यात्रा निश्चित रूप से संवाद की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने और भविष्य में बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है, लेकिन इसके लिए धैर्य और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी।
- विश्वास बहाली की अनिवार्यता: भारत और चीन के बीच रिश्तों को सामान्य करने और उन्हें एक स्थिर दिशा देने के लिए सबसे जरूरी है विश्वास बहाली (Trust Building)। सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना, यथास्थिति का सम्मान करना, और पूर्व समझौतों का पालन करना इस दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। भारत ने लगातार यह स्पष्ट किया है कि जब तक सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं होती, तब तक सामान्य द्विपक्षीय संबंध संभव नहीं हैं।
एस. जयशंकर की चीन यात्रा SCO समिट और मानसरोवर यात्रा पर केंद्रित जरूर थी, लेकिन गलवान की पृष्ठभूमि और चीनी उपराष्ट्रपति से उनकी उच्च-स्तरीय मुलाकात ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। यह देखना होगा कि इस दौरे से दोनों देशों के रिश्तों में कोई ठोस सकारात्मक बदलाव आता है या नहीं, या यह केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाती है। फिलहाल, यह यात्रा संवाद की खिड़की खुली रखने और भविष्य में बातचीत के लिए एक मंच तैयार करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास जरूर है। यह इस बात का भी संकेत है कि दोनों देश, तनाव के बावजूद, एक-दूसरे से पूरी तरह से किनारा नहीं करना चाहते।




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