मध्य-पूर्व की बिसात पर एक नया और जटिल खेल शुरू हो गया है, जिसके मुख्य खिलाड़ी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। हमेशा से इजरायल के सबसे मुखर समर्थक माने जाने वाले ट्रंप ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है, जिसने न केवल उनके अपने पारंपरिक रुख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उनके सबसे करीबी सहयोगी इजरायल को भी एक कड़ा रणनीतिक संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ईरान के सबसे अभेद्य परमाणु किले, फोर्डो (Fordow) को तबाह करना इजरायल के बस की बात नहीं है।
यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक बहुस्तरीय चेतावनी और अमेरिकी शक्ति का खुला प्रदर्शन है, जिसके कई गहरे मायने हैं।
चेतावनी के पीछे का सच: “आप फोर्डो को नष्ट नहीं कर सकते”
जब ट्रंप ने यह कहा कि इजरायली सेना ईरान के फोर्डो प्लांट को भेद नहीं सकती, तो वह सिर्फ एक सैन्य आकलन नहीं दे रहे थे। इसके पीछे कई रणनीतिक उद्देश्य छिपे हैं:
इजरायल को लगाम लगाना: हाल के दिनों में इजरायल ने ईरान के खिलाफ आक्रामक सैन्य अभियान चलाया है। ट्रंप का बयान इजरायल को यह याद दिलाने जैसा है कि उसकी सैन्य क्षमताओं की एक सीमा है। यह एकतरफा कार्रवाई के परिणामों के प्रति आगाह करने और यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि कोई भी बड़ा कदम अमेरिकी हरी झंडी के बिना न उठाया जाए।
अमेरिका की सर्वोच्चता का संदेश: बातों-बातों में ट्रंप ने पूरी दुनिया और विशेषकर ईरान को यह संदेश दिया है कि फोर्डो जैसे पहाड़ के सैकड़ों फीट नीचे बने बंकर को नष्ट करने की तकनीक—यानी ‘बंकर-बस्टर’ बम—सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के पास है। यह एक तरह से ईरान को सीधी धमकी है कि अगर अमेरिका ने फैसला कर लिया, तो उसके परमाणु कार्यक्रम का सबसे सुरक्षित हिस्सा भी पल भर में मलबे में बदल सकता है।
क्या है फोर्डो की पहेली?
ईरान का फोर्डो फ्यूल एनरिचमेंट प्लांट कोई साधारण परमाणु स्थल नहीं है। इसे एक अभेद्य किले के रूप में डिजाइन किया गया है।
भौगोलिक सुरक्षा: इसे एक विशाल पहाड़ के नीचे लगभग 300 फीट की गहराई में बनाया गया है ताकि यह हवाई हमलों से पूरी तरह सुरक्षित रह सके।
रणनीतिक महत्व: यह ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां उच्च शुद्धता वाले यूरेनियम का उत्पादन किया जा सकता है, जो परमाणु हथियार बनाने के करीब ले जाता है।
इसी वजह से फोर्डो को नष्ट करना किसी भी देश के लिए एक दुःस्वप्न जैसा है। यह केवल सैन्य ताकत का सवाल नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग और तकनीक की भी एक बड़ी चुनौती है।
ट्रंप के बदलते तेवर: आक्रामकता और कूटनीति का मिश्रण
ट्रंप का यह नया रुख उनके पिछले “अधिकतम दबाव” की नीति का एक विकसित रूप प्रतीत होता है। पहले उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौते को रद्द कर दिया और कड़े प्रतिबंध लगाए। अब, जब सैन्य टकराव वास्तविकता बन चुका है, तो वह एक नई दोहरी रणनीति अपना रहे हैं:
एक ओर, वह ईरान पर हमले की सीधी धमकी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि वह जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
दूसरी ओर, वह इजरायल की सीमाओं को उजागर करके ईरान को यह संदेश दे रहे हैं कि असली निर्णायक शक्ति अभी भी वाशिंगटन के हाथों में है, जिससे शायद बातचीत का एक आखिरी दरवाजा खुला रह सके।
यह ट्रंप की खास शैली है—एक ही समय में एक आक्रामक योद्धा और एक चतुर वार्ताकार की भूमिका निभाना। वह ईरान को यह विकल्प दे रहे हैं कि या तो वह अमेरिकी शर्तों पर झुके, या फिर उस अमेरिकी सैन्य शक्ति का सामना करे जिसे इजरायल भी चुनौती नहीं दे सकता।
डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान मध्य-पूर्व में शक्ति संतुलन को फिर से परिभाषित कर रहा है। यह इजरायल के लिए एक असहज करने वाला सत्य है कि उसकी सुरक्षा काफी हद तक अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकी और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। वहीं, ईरान के लिए यह एक सीधी चेतावनी है कि उसे इजरायल से कहीं ज़्यादा ताकतवर दुश्मन का सामना करना पड़ सकता है। अंततः, ट्रंप ने यह साबित कर दिया है कि इस जटिल भू-राजनीतिक शतरंज में, अंतिम चाल चलने का अधिकार उन्होंने अपने पास ही सुरक्षित रखा है।
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