हाल ही में, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए 19 देशों पर नया यात्रा प्रतिबंध लगाया है, जिनमें मुख्य रूप से अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देश शामिल हैं। इन देशों में अफगानिस्तान, म्यांमार, चाड, कांगो गणराज्य, इक्वेटोरियल गिनी, इरीट्रिया, हैती, ईरान, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन जैसे 12 देश ऐसे हैं जिनके नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके अतिरिक्त, बुरुंडी, क्यूबा, लाओस, सिएरा लियोन, टोगो, तुर्कमेनिस्तान और वेनेजुएला सहित सात अन्य देशों पर भी आंशिक पाबंदियां लगाई गई हैं।
यह सूची उन देशों को शामिल करते हुए जारी की गई है जिनसे अमेरिका को सुरक्षा खतरा बताया गया है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस सूची से पाकिस्तान का नाम गायब है। यह तब और अधिक उल्लेखनीय है जब मार्च तक पाकिस्तान को भी इस संशोधित सूची में शामिल किए जाने की चर्चा थी। यह बदलाव उस समय हुआ है जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर में हैं।
यह स्थिति और भी विरोधाभासी है क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों द्वारा लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी नेटवर्क को पनाह देने का आरोप लगाया जाता रहा है। पाकिस्तान को इस यात्रा प्रतिबंध सूची से बाहर रखने का यह हालिया फैसला डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल (2017 से 2021) के दौरान उनके कार्यों और बयानों के बिल्कुल विपरीत है, जब उन्होंने इस्लामाबाद द्वारा आतंकवाद के कथित समर्थन पर काफी सख्त रुख अपनाया था।
ट्रम्प के रुख में अचानक बदलाव का कारण
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च में ट्रम्प प्रशासन के एक आंतरिक ज्ञापन में इस बात की पुष्टि की गई थी कि पाकिस्तान को भी सुरक्षा खतरों के रूप में यात्रा प्रतिबंध वाली संशोधित सूची में शामिल करने पर विचार किया गया था। हालांकि, जब अंतिम सूची जारी की गई, तो उससे पाकिस्तान का नाम हटा दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह अचानक बदलाव तब किया गया है जब पाकिस्तान और ट्रम्प परिवार से जुड़ी व्यापारिक संस्थाओं के बीच व्यावसायिक और राजनीतिक संबंध गहरे हो रहे हैं।
यह ध्यान देने योग्य है कि यही डोनाल्ड ट्रम्प थे जिन्होंने 2018 में कहा था कि अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को छिपाने में पाकिस्तान की मिलीभगत थी। उन्होंने तब स्पष्ट रूप से कहा था, “पाकिस्तान में सैन्य अकादमी के ठीक बगल में रहने के कारण, पाकिस्तान में हर कोई जानता था कि लादेन वहीं है।” ट्रम्प ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान आतंकवादियों का पनाहगाह है और इस वजह से अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता में 300 मिलियन डॉलर की कटौती की थी। इसके बाद, अमेरिका ने 2019 में कई पाकिस्तानी अधिकारियों और सरकार के प्रतिनिधियों पर वीजा प्रतिबंध भी लगाया था।
ट्रम्प परिवार से कनेक्शन
पाकिस्तान के प्रति ट्रम्प की नरमी का यह रुख इसलिए सामने आया है क्योंकि पाकिस्तान और वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (WLF) के बीच क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अप्रैल में एक समझौता हुआ है। WLF संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित एक फिनटेक फर्म है और कथित तौर पर WLF ट्रम्प परिवार के सदस्यों से जुड़ा हुआ है, जिसमें एरिक ट्रम्प, डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर और जेरेड कुशनर शामिल हैं। ये लोग सामूहिक रूप से WLF के स्वामित्व में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं।
अप्रैल में हस्ताक्षरित इस समझौते में पाकिस्तान में ब्लॉकचेन इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना और राष्ट्रीय संपत्तियों को टोकन करना शामिल है। अप्रैल में जब इस्लामाबाद में WLF का प्रतिनिधिमंडल यह समझौता करने पहुंचा तो उसमें ट्रम्प के पुराने मित्र और मध्य-पूर्व में अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के बेटे जैचरी विटकॉफ भी शामिल थे।
पाक सेना प्रमुख, पीएम और मंत्रियों का आतिथ्य
पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने स्वयं आगे बढ़कर WLF प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया था। बाद में इस प्रतिनिधिमंडल से स्वयं प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, उप प्रधानमंत्री इशाक डार और रक्षा एवं सूचना मंत्रियों सहित शरीफ सरकार की बड़ी हस्तियों ने भी मुलाकात की थी। तभी से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि इन उच्च-स्तरीय बैठकों की मौजूदगी से साफ है कि यह कोई साधारण वाणिज्यिक समझौता नहीं था। अब ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान को उस सूची से बाहर रखने के इस निर्णय ने उस व्यापारिक और राजनीतिक गठजोड़ का खुलासा स्वयं कर दिया है। यह घटनाक्रम ट्रम्प के “अमेरिका फर्स्ट” की नीति के तहत अपने व्यावसायिक हितों को साधने के एक संभावित उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है, भले ही इसके लिए अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव करना पड़े।