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Raghuv
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RaghuvSliver
Asked: June 5, 20252025-06-05T14:35:09+05:30 2025-06-05T14:35:09+05:30In: Analytics

ट्रंप के टैक्स बिल से मस्क खफा: मस्क क्यों कर रहे ट्रंप के टैक्स बिल का विरोध, क्या है अमेरिका के बढ़ते कर्ज का सच?

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ट्रंप के टैक्स बिल से मस्क खफा: मस्क क्यों कर रहे ट्रंप के टैक्स बिल का विरोध, क्या है अमेरिका के बढ़ते कर्ज का सच?

पूंजीवाद के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स का कर्ज को लेकर एक बहुत ही सटीक कथन है: “अगर आप पर बैंक का सौ पाउंड बकाया है, तो ये आपकी परेशानी है. लेकिन अगर आप पर दस लाख का बकाया है, तो ये समस्या बैंक की है.” यह कथन, जिसने अमेरिका सहित दुनिया को 1929 की महामंदी से उबारने में मदद की, आज के अमेरिका पर बिल्कुल सटीक बैठता है, जहां राष्ट्रीय कर्ज एक अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है.

अमेरिका का बढ़ता कर्ज: एक गंभीर समस्या

अमेरिकी सरकार की संस्था यूएस ट्रेजरी के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज अब 36 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 3170 लाख करोड़ रुपये) के पार पहुंच चुका है. यह आंकड़ा अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 122% है. इसका सीधा सा मतलब है कि अमेरिका एक साल में जितना सामान और सेवाएं पैदा करता है, उससे कहीं ज्यादा कर्ज लेता है. कीन्स ने साफ कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी हैसियत के हिसाब से ही कर्ज लेना चाहिए, और अगर बैंक उसे उसकी क्षमता से ज्यादा कर्ज देता है, तो यह बैंक की गलती है. अमेरिका के मामले में, यह कर्ज अब इतनी बड़ी समस्या बन गया है कि इसका बोझ पूरे देश पर पड़ रहा है.

$36 ट्रिलियन को समझना

यह 36 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा इतना विशाल है कि इसे आम जीवन में समझना मुश्किल है. इसे आसान बनाने के लिए, आपको बता दें कि भारत की कुल अर्थव्यवस्था अभी 4.19 ट्रिलियन डॉलर की है. यानी, अमेरिका पर जो कर्ज है, वह भारत की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 8 गुना है.

इसे और भी सरल शब्दों में समझें: 1 ट्रिलियन में 1000 बिलियन होते हैं, और भारत के संदर्भ में 1 बिलियन डॉलर का मतलब लगभग 85 अरब रुपये है. अब आप खुद ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था के आकार (जो 30.51 ट्रिलियन डॉलर है) और उस पर चढ़े 36 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज का आकलन रुपये में लगा सकते हैं. यह इतना बड़ा आंकड़ा है कि इसका हिसाब लगाना भी मुश्किल हो सकता है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद अमेरिका पर यह कर्ज का बोझ एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है.

एलॉन मस्क की चेतावनी: ‘आर्थिक गुलामी का प्रतीक’

टेस्ला कंपनी के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलॉन मस्क ने अमेरिका के इसी बढ़ते कर्ज पर गहरी चिंता जताई है. मस्क ने कहा है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो अमेरिका बहुत जल्द दिवालिया होने जा रहा है. उन्होंने इस कर्ज को “अमेरिकी आर्थिक गुलामी का प्रतीक” बताया है.

मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्तावित टैक्स और खर्च विधेयक (Omnibus spending bill) की आलोचना करते हुए अमेरिका के राष्ट्रीय कर्ज को लेकर चेतावनी दी है, जिसे उन्होंने “आर्थिक सुनामी” कहा है. उनका मानना है कि यह बिल कर्ज को और बढ़ाएगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी, नकदी का संकट आएगा और अंततः आर्थिक मंदी का खतरा पैदा होगा. मस्क की यह चेतावनी अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर संकेत है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

राष्ट्रीय कर्ज को विस्तार से समझिए

जिस तरह किसी व्यक्ति पर कर्ज होता है, उसी तरह एक देश भी कर्ज के जाल में फंसा हो सकता है. इसमें हर तरह का उधार शामिल होता है.

राष्ट्रीय कर्ज वह राशि है जो संघीय (केंद्र) सरकार ने समय के साथ किए गए खर्चों को चुकाने के लिए उधार लिया है. इसका सीधा सा मतलब है कि ऐसी सरकार अपनी कमाई से ज्यादा खर्च कर रही है. दुनिया में सभी देश कर्ज लेते हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था की सेहत को देखते हुए इन देशों ने इसकी समय सीमा तय कर दी है.

किसी दिए गए वित्तीय वर्ष में जब खर्च, राजस्व (कमाई) से अधिक होता है, तो बजट घाटा होता है. इस घाटे का भुगतान करने के लिए, संघीय सरकार ट्रेजरी बॉन्ड, बिल, नोट्स, फ्लोटिंग रेट नोट्स और ट्रेजरी इन्फ्लेशन-प्रोटेक्टेड सिक्योरिटीज जैसे साधन बाजार में बेचती है, और वहां से निवेशकों से पैसे उधार लेती है. राष्ट्रीय कर्ज का मतलब उधार लिया गया यह पैसा और इस पर दिया जाने वाला ब्याज दोनों शामिल है.

अमेरिका अपनी स्थापना के समय से ही कर्ज में डूबा हुआ है. अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के दौरान लिया गया कर्ज 1 जनवरी, 1791 तक 75 मिलियन डॉलर से अधिक हो गया था, और तब से यह सिलसिला लगातार जारी है. 1925 में अमेरिका के ऊपर 370 बिलियन डॉलर का कर्ज था, जो आज 100 साल बाद बढ़कर 36 ट्रिलियन डॉलर हो गया है.

भारत पर क्या होगा इसका असर?

एलॉन मस्क की यह चेतावनी और अमेरिका के बढ़ते कर्ज का भारत पर मिश्रित प्रभाव पड़ सकता है. एक ओर, वैश्विक आर्थिक मंदी या नकदी संकट की स्थिति में भारत के निर्यात को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अमेरिका भारतीय उत्पादों का एक बड़ा खरीदार है. वहीं, दूसरी ओर, कुछ क्षेत्रों में अवसर भी पैदा हो सकते हैं, जैसे कि डॉलर की कमजोरी से भारतीय आईटी और सेवा क्षेत्र को लाभ मिल सकता है, या अमेरिका से निकलने वाले निवेश भारत जैसे स्थिर बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं.

कुल मिलाकर, अमेरिका का बढ़ता कर्ज एक गंभीर वैश्विक चिंता का विषय है, और इसके संभावित परिणामों पर नजर रखना महत्वपूर्ण है.

क्या आप अमेरिका के कर्ज के किसी खास पहलू पर और जानकारी चाहते हैं, या इसके भारत पर पड़ने वाले प्रभावों को और गहराई से जानना चाहेंगे?

एलॉन मस्क की “कर्ज की गुलामी” की चेतावनी

टेस्ला के चेयरमैन एलॉन मस्क ने हाल ही में अमेरिकी सरकार के प्रस्तावित बिल को “Debt Slavery Bill” (कर्ज की गुलामी में ले जाने वाला बिल) करार दिया है. उनका मानना है कि यह बिल अमेरिका को कर्ज के जाल में और भी गहरा धकेल देगा, जिससे देश की आर्थिक संप्रभुता खतरे में पड़ जाएगी.

मस्क के अनुसार, इस बिल में प्रस्तावित खर्च (जैसे रक्षा बजट में वृद्धि और टैक्स छूट) से राष्ट्रीय कर्ज में 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त बढ़ोतरी हो सकती है. उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा है कि अगर यह बिल पास होता है, तो सरकार की आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा केवल कर्ज के ब्याज भुगतान में चला जाएगा. इससे सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और अन्य जरूरी सार्वजनिक खर्चों के लिए धन की भारी कमी हो सकती है.

एलॉन मस्क ने अमेरिकी नागरिकों को भी अपने खर्चों में कटौती करने की सलाह दी है. उन्होंने एक वीडियो में कहा, “हमें अमेरिकी समृद्धि को हल्के में नहीं लेना चाहिए. हमें सरकार की साइज छोटी करनी होगी, खर्च कम करना होगा और अपने साधनों के भीतर गुजारा करना होगा.” उनकी चिंता का मुख्य कारण यह है कि अमेरिकी सरकार की आय का लगभग 25% हिस्सा पहले ही कर्ज के ब्याज में जा रहा है, जिससे सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए धन की उपलब्धता प्रभावित हो रही है.

एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जो मस्क ने उठाया है, वह यह है कि यह बिल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए टैक्स क्रेडिट को खत्म करता है. यह सीधे तौर पर उनकी कंपनी टेस्ला को नुकसान पहुंचा सकता है, जो इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी है.
अमेरिका किस संकट की ओर बढ़ रहा है?

एलॉन मस्क और अन्य वित्तीय दिग्गजों की चेतावनियां इस बात का संकेत दे रही हैं कि अमेरिका कई गंभीर आर्थिक संकटों की ओर बढ़ रहा है:

कर्ज संकट (Debt Crisis):

बढ़ता राष्ट्रीय कर्ज सरकार की वित्तीय क्षमता को लगातार सीमित कर रहा है. एक अनुमान के अनुसार, यदि वर्तमान दर से कर्ज बढ़ता रहा तो 2035 तक यह जीडीपी का 140% तक पहुंच सकता है, जो लंबे समय में देश की आर्थिक स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा है. यदि ब्याज दरें बढ़ती रहीं, तो कर्ज का ब्याज सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा खा सकता है, जिससे मेडिकेयर, रक्षा और अन्य आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. 2023 में अमेरिका ने सिर्फ कर्ज के ब्याज भुगतान पर $1 ट्रिलियन से अधिक खर्च किए, जो कि एक चौंकाने वाला आंकड़ा है. ब्याज दरों में वृद्धि से यह बोझ और भी बढ़ जाएगा.

बॉन्ड मार्केट अस्थिरता (Bond Market Instability):

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, विदेशी निवेशक अमेरिकी बॉन्ड बेच रहे हैं और बाजार से डॉलर निकाल रहे हैं, जिससे नकदी की कमी (liquidity crunch) का खतरा बढ़ सकता है. मस्क ने चेतावनी दी है कि यदि कर्ज की स्थिति अनियंत्रित रही, तो अमेरिका डिफॉल्ट (default) की स्थिति की ओर बढ़ सकता है. हालांकि यह अभी दूर की संभावना है, लेकिन यह एक गंभीर परिणाम हो सकता है. डिफॉल्ट का अर्थ है कि देश अपने कर्ज obligations को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है, जिससे वैश्विक वित्तीय बाजारों में भारी उथल-पुथल मच सकती है.

महंगाई और मंदी (Inflation and Recession):

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण आयातित सामान की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे देश में महंगाई बढ़ने की आशंका है. ब्लूमबर्ग के एक सर्वे में अर्थशास्त्रियों ने 2025 के लिए अमेरिका की विकास दर के अनुमान को 2% से घटाकर 1.4% कर दिया है, और मंदी की संभावना को 30% माना जा रहा है. महंगाई और धीमी आर्थिक वृद्धि का संयोजन, जिसे स्टैगफ्लेशन कहा जाता है, अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही हानिकारक हो सकता है.

दिग्गजों ने बजाई खतरे की घंटी

  1. अमेरिका में कर्ज के बढ़ते ट्रेंड पर वॉल स्ट्रीट के कई दिग्गज खतरे की घंटी बजा रहे हैं:
  2. जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डिमन ने खर्च पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत बताई है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि वर्तमान वित्तीय मार्ग unsustainable है.
  3. हेज फंड के दिग्गज रे डेलियो ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिकी वित्तीय व्यवस्था में दुनिया का विश्वास कम हुआ तो “ऋण संकट” की स्थिति पैदा हो सकती है. उनका मानना है कि अमेरिकी बॉन्ड की मांग में गिरावट आने पर सरकार के लिए कर्ज लेना और मुश्किल हो जाएगा.
  4. काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस का अनुमान है कि संरचनात्मक सुधारों के बिना, अमेरिका का ऋण अगले 30 वर्षों में फिर से दोगुना हो सकता है. इससे सरकार की रक्षा, बुनियादी ढांचे या सामाजिक कार्यक्रमों में निवेश करने की क्षमता गंभीर रूप से सीमित हो जाएगी, जिससे देश की भविष्य की प्रगति पर नकारात्मक असर पड़ेगा.
  5. कुल मिलाकर, अमेरिका का बढ़ता कर्ज एक जटिल और गंभीर समस्या है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, न केवल अमेरिका के लिए, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी.
एलन मस्कडोनाल्ड ट्रंपसंयुक्त राज्य अमेरिका
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