ईरान और इजराइल के बीच चल रहे लगातार हमलों ने वैश्विक चिंताएं बढ़ा दी हैं, और इसका सबसे अधिक प्रभाव रूस और चीन पर पड़ रहा है. इन दोनों महाशक्तियों के नेता, व्लादिमिर पुतिन और शी जिनपिंग, इस संघर्ष को लेकर गहरे तनाव में हैं. इसका मुख्य कारण ईरान है, जो इस युद्ध के परिणामस्वरूप या तो एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरेगा या कमजोर होगा. दोनों ही परिस्थितियों में, रूस और चीन को डर है कि वे मध्य पूर्व में अपने एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार को खो सकते हैं.
पुतिन और जिनपिंग ने मध्य पूर्व के हालातों पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है और वे सार्वजनिक रूप से ईरान के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. विशेष रूप से, दोनों नेताओं ने इजराइल के ‘राइजिंग लॉयन ऑपरेशन’ पर नाराजगी जताई है, जिसमें इजराइल ने ईरान के परमाणु केंद्रों को निशाना बनाया था. हालांकि, दोनों ही देश यह नहीं चाहते कि यह संघर्ष लंबा चले, क्योंकि ईरान की जीत या हार, दोनों ही सूरतों में पुतिन और जिनपिंग के लिए परेशानियाँ बढ़ेंगी. आइए समझते हैं कैसे:
1. मध्य पूर्व में अमेरिकी वर्चस्व को कौन देगा चुनौती?
रूस और चीन की सबसे पहली और बड़ी चिंता यह है कि अगर ईरान इस संघर्ष में कमजोर होता है, तो मध्य पूर्व में अमेरिका का वर्चस्व और अधिक बढ़ जाएगा. ईरान, इस क्षेत्र में एकमात्र ऐसा महत्वपूर्ण साझेदार है जो अकेले अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने की क्षमता रखता है. अगर ईरान कमजोर पड़ता है, तो रूस और चीन एक ऐसे अहम सहयोगी को खो देंगे जो उनके भू-राजनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है.
रूस पहले ही सीरिया में असद शासन के अंत के साथ एक साझेदार खो चुका है, जहाँ उसकी एक मजबूत सैन्य उपस्थिति थी. इजराइल के राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन संस्थान में चीन और मध्य पूर्व की विशेषज्ञ तुविया गेरिंग ने द टेलीग्राफ को बताया है कि ईरान और रूस पश्चिमी देशों के वर्चस्व को चुनौती देने में प्राकृतिक साझेदार हैं. दोनों देश एक-दूसरे से सीखते हैं और अपनी आबादी के लिए सैन्य तथा अन्य तकनीकें भी साझा करते हैं. ईरान का कमजोर होना इस भू-राजनीतिक गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका होगा.
2. ईरान का परमाणु कार्यक्रम: एक संवेदनशील मुद्दा
रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए ईरान रूस को लगातार ड्रोन की आपूर्ति कर रहा है. रूस और ईरान के मामलों के विशेषज्ञ निकोल ग्रेजवेस्की ने टेलीग्राफ से बातचीत में कहा कि रूस को ईरान से मिलने वाले ड्रोन की आपूर्ति की इतनी चिंता नहीं है, क्योंकि रूस की अपनी फैक्ट्रियां भी ड्रोन उत्पादन में सक्षम हैं. रूस की असली चिंता यह है कि अगर इस तनाव के बहाने ईरान परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) से हटकर अपने परमाणु कार्यक्रम को और तेज करता है, जैसा कि वह पहले भी धमकी दे चुका है.
चीन और रूस दोनों स्वयं परमाणु हथियार संपन्न देश हैं, और वे नहीं चाहते कि ईरान परमाणु बम बनाए. यदि ईरान परमाणु बम विकसित कर लेता है, तो उसकी चीन और रूस पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी, जिससे दोनों देशों का उस पर रणनीतिक नियंत्रण कमजोर हो जाएगा. यह स्थिति मध्य पूर्व में एक नया परमाणु हथियारों की दौड़ शुरू कर सकती है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा होगी.
3. ईरान से तेल आयात पर संभावित प्रभाव
अगर यह जंग लंबी चलती है, तो इजराइल के हमलों से ईरान के महत्वपूर्ण तेल डिपो को भी नुकसान पहुँच सकता है. चीन ईरान से प्रतिदिन लगभग दो मिलियन बैरल तेल आयात करता है. यदि तेल डिपो तबाह होते हैं, तो यह आपूर्ति सीधे तौर पर प्रभावित होगी, जिससे चीन की ऊर्जा सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा.
इसके अलावा, एक और चिंता यह है कि यदि संघर्ष बढ़ता है, तो ईरान संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों पर हमला कर सकता है. चीन इन दोनों देशों से भी बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है. ऐसे हमलों से इन देशों से होने वाली तेल आपूर्ति भी बाधित हो सकती है. यह स्थिति चीन के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि वह पहले से ही अमेरिका के साथ एक व्यापार युद्ध का सामना कर रहा है. ऊर्जा आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा चीन की अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर सकती है.
4. आर्थिक नुकसान और वैश्विक स्थिरता
यदि ईरान पर नए और कड़े प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो ईरान में चल रही चीन की विभिन्न परियोजनाओं पर सीधा असर पड़ेगा, जिससे चीनी निवेश को भारी नुकसान होगा. वहीं, रूस के लिए, ईरान एक बड़ा रक्षा उपकरण खरीदार है. यदि ईरान आर्थिक रूप से कमजोर होता है और उस पर प्रतिबंध लगते हैं, तो रूस के पास अपने रक्षा उपकरणों के लिए एक बड़ा खरीदार नहीं रहेगा, जिससे उसे भी महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान होगा.
यही कारण है कि रूस और चीन सार्वजनिक रूप से इजराइल के हमलों की निंदा कर रहे हैं, लेकिन असल में दोनों ही देश चाहते हैं कि यह जंग यहीं थम जाए. वे समझते हैं कि इस संघर्ष का लंबा खिंचना या ईरान का कमजोर होना उनके अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों के लिए हानिकारक होगा.
रूस और चीन के भरसक प्रयास
ईरान और इजराइल के बीच जंग रुकवाने के लिए रूस और चीन की बेचैनी उनके हालिया कदमों से साफ झलकती है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी बोर्ड (आईएईए) की एक आपातकालीन बैठक बुलाई है. उन्होंने नेतन्याहू (इजराइल के प्रधानमंत्री) और ईरानी राष्ट्रपति महमूद पेजेश्कियन से भी बात की है. यहाँ तक कि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप से बातचीत में भी युद्ध खत्म किए जाने की वकालत की है, जिससे रूस की गंभीरता का पता चलता है.
उधर, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इजराइल को रोके जाने की बात कही है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी अपने इजराइली और ईरानी समकक्षों से बातचीत की है, ताकि तनाव कम किया जा सके. ये राजनयिक प्रयास दर्शाते हैं कि रूस और चीन दोनों इस क्षेत्र में स्थिरता चाहते हैं और अपने महत्वपूर्ण साझेदार ईरान को किसी भी बड़े नुकसान से बचाना चाहते हैं.