दरभंगा, बिहार: बिहार के कृषि प्रधान राज्य में अब तक के सबसे बड़े आर्थिक अपराधों में से एक का पर्दाफाश हुआ है। दरभंगा जिले में एक ऐसे संगठित आपराधिक गिरोह का खुलासा हुआ है जो बड़े पैमाने पर नकली उर्वरक (खाद) बनाकर भोले-भाले किसानों को बेच रहा था। पुलिस और कृषि विभाग की संयुक्त टीम द्वारा की गई एक गुप्त और सटीक छापेमारी में एक विशालकाय नकली खाद बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ हुआ है, जहां करोड़ों रुपये मूल्य का नकली और घटिया खाद तैयार किया जा रहा था। इस कार्रवाई ने बिहार के कृषि क्षेत्र में भूचाल ला दिया है। एक तरफ जहां यह प्रशासन के लिए एक बड़ी सफलता है, वहीं दूसरी ओर उन हजारों किसानों के माथे पर चिंता की गहरी लकीरें खींच दी हैं, जिन्होंने शायद अनजाने में अपनी फसलों में इसी जहरीले और निष्क्रिय खाद का इस्तेमाल किया हो।
करोड़ों का काला कारोबार: कैसे फैला ये ‘जहर’ खेतों तक?
लंबे समय से बिहार के विभिन्न जिलों, विशेष रूप से दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी और समस्तीपुर जैसे कृषि बहुल इलाकों से नकली खाद बेचे जाने की शिकायतें आ रही थीं। किसानों की फसलें पीली पड़ रही थीं, पैदावार घट रही थी और मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित हो रही थी। ये शिकायतें धीरे-धीरे इतनी बढ़ गईं कि कृषि विभाग और पुलिस प्रशासन को गंभीरता से इसकी पड़ताल करने की जरूरत महसूस हुई। खुफिया एजेंसियों को इस गोरखधंधे में शामिल एक बड़े गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली, जिसका संचालन दरभंगा से किया जा रहा था।
गुप्त सूचना के आधार पर, यह पता चला कि जिले के शहरी इलाके से कुछ दूरी पर स्थित एक सुनसान ग्रामीण क्षेत्र (जैसे कि एनएच-57 से हटकर किसी औद्योगिक भूखंड या पुराने गोदाम) में एक बड़ी फैक्ट्री चल रही है, जो बाहर से तो सामान्य दिखती थी, लेकिन भीतर करोड़ों के नकली खाद का उत्पादन हो रहा था। इस सूचना को सत्यापित करने के बाद, दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक (SSP) और जिला कृषि पदाधिकारी के नेतृत्व में पुलिस की विशेष टीमों (जिसमें डीआईयू और तकनीकी सेल के अधिकारी भी शामिल थे) तथा कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने एक संयुक्त और गोपनीय छापेमारी की योजना बनाई।
बीती रात, आधी रात के बाद, जब सब कुछ शांत था, टीमों ने उस संदिग्ध गोदाम को चारों ओर से घेर लिया। अंदर घुसते ही टीमों की आंखें फटी रह गईं। वह एक полноцен कारखाना था, जहां बड़े-बड़े कंक्रीट मिक्सर और अन्य मशीनें लगी हुई थीं, जिनमें धूल, मिट्टी, रेत, सफेद पत्थर का पाउडर, नमक और कुछ सस्ते, अमानक रसायनों को मिलाकर ‘पोषक तत्वों’ से भरपूर खाद का नकली मिश्रण तैयार किया जा रहा था।
छापेमारी में मिली चौकाने वाली सामग्री और उपकरण:
- भारी मात्रा में तैयार नकली खाद: गोदाम के भीतर सैकड़ों की संख्या में ऐसे बोरे मिले, जो प्रतिष्ठित कंपनियों के नाम और लोगो के साथ पैक किए गए थे। इनकी अनुमानित बाजार कीमत कई करोड़ रुपये बताई जा रही है।
- नामी ब्रांड्स की नकली पैकेजिंग: ‘इफको (IFFCO)’, ‘कृभको (KRIBHCO)’, ‘यूरिया’, ‘डीएपी’, ‘पोटाश’ जैसे भारत के सबसे विश्वसनीय खाद ब्रांडों के नकली बोरे, खाली पैकेजिंग सामग्री, सिलाई मशीनें और नकली ट्रेडमार्क के स्टिकर बड़ी संख्या में बरामद हुए।
- घटिया और प्रतिबंधित कच्चा माल: ट्रकों और बोरों में भरकर रखा गया सफेद पाउडर (संभवतः डोलोमाइट या जिप्सम), बारीक रेत, सामान्य मिट्टी, और औद्योगिक नमक जैसी चीजें मिलीं, जिनका खाद में कोई काम नहीं होता, बल्कि ये मिट्टी को नुकसान पहुंचाते हैं।
- अत्याधुनिक मिश्रण मशीनें: बड़ी क्षमता वाली मिक्सिंग मशीनें और पैकेजिंग के लिए स्वचालित मशीनें भी मिलीं, जो दर्शाती हैं कि यह धंधा कितनी पेशेवर तरीके से चलाया जा रहा था।
- फर्जी दस्तावेज और नकदी: गोदाम से लाखों रुपये की नकदी, फर्जी बिल बुक, डिलीवरी चालान और ग्राहकों की लिस्ट भी मिली है, जिससे इस नेटवर्क की गहराई का पता चलता है।
- गिरफ्तारियां: मौके से कई मजदूर और फैक्ट्री संचालक/मास्टरमाइंड से जुड़े कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिनसे गहन पूछताछ जारी है।
किसानों पर दोहरी मार: खून-पसीने की कमाई डूबी, फसलें हुईं बर्बाद!
इस नकली खाद का सबसे भयावह प्रभाव सीधे किसानों पर पड़ रहा था। यह उन पर दोहरी नहीं, बल्कि तिहरी मार थी:
- आर्थिक शोषण: किसान, जो अक्सर छोटे और सीमांत होते हैं और कर्ज लेकर खेती करते हैं, अपनी गाढ़ी कमाई से महंगे दामों पर खाद खरीदते थे। उन्हें यह नहीं पता होता था कि वे जो बोरा खरीद रहे हैं, उसमें मिट्टी और नमक भरा है, न कि यूरिया या डीएपी। इस तरह उनकी हजारों-लाखों रुपये की पूंजी सीधे इन जालसाजों की जेब में जा रही थी।
- फसल का नुकसान: नकली खाद में पौधों के लिए आवश्यक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते ही नहीं। किसान जब इसे अपनी फसल में डालते थे, तो फसल को कोई पोषण नहीं मिलता था। इसका परिणाम यह होता था कि या तो फसल कमजोर पड़ जाती थी, पीली पड़कर सूख जाती थी, या फिर पैदावार इतनी कम होती थी कि लागत भी नहीं निकल पाती थी। कई मामलों में तो पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती थी, जिससे किसानों पर कर्ज का बोझ और बढ़ जाता था और वे गहरे अवसाद में चले जाते थे।
- मिट्टी का क्षरण: घटिया और हानिकारक रसायनों के उपयोग से खेत की मिट्टी की गुणवत्ता भी लंबे समय के लिए खराब हो जाती थी। इससे मिट्टी में आवश्यक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते थे और उसकी प्राकृतिक उर्वरता घट जाती थी, जिसका प्रभाव आने वाली कई फसलों पर पड़ता था।
- विश्वास का टूटना: इस तरह के धोखे से किसानों का कृषि बाजार, खाद विक्रेताओं और यहां तक कि कृषि सलाह पर से भी भरोसा उठ जाता है। वे दुविधा में रहते हैं कि कहां से खाद खरीदें और किस पर विश्वास करें।
पुलिस की आगे की कार्रवाई और कानूनी शिकंजा
पुलिस ने गिरफ्तार किए गए आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और आवश्यक वस्तु अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस अब गिरफ्तार आरोपियों से पूरे नेटवर्क के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाने की कोशिश कर रही है। इसमें नकली खाद बनाने वाले अन्य ठिकानों, वितरण चैनलों, गोदामों और मुख्य सरगना की पहचान करना शामिल है। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि इस गोरखधंधे में कितने डीलर और कमीशन एजेंट शामिल थे, और यह नेटवर्क बिहार के अलावा किन-किन राज्यों तक फैला हुआ था।
दरभंगा के एसएसपी ने मीडिया को बताया कि यह केवल एक फैक्ट्री नहीं, बल्कि एक बड़े आपराधिक सिंडिकेट का हिस्सा है, जिस पर लंबे समय से नजर रखी जा रही थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस मामले में शामिल किसी भी बड़े या छोटे अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी।
सरकार का आश्वासन और किसानों के लिए सलाह
बिहार के कृषि मंत्री ने इस भंडाफोड़ को सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के साथ हो रहे इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगी और पूरे राज्य में ऐसे नकली कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे खाद खरीदते समय अत्यधिक सावधानी बरतें:
- अधिकृत डीलरों से खरीदें: खाद हमेशा सरकार द्वारा अधिकृत या विश्वसनीय कृषि केंद्रों और डीलरों से ही खरीदें।
- पक्की रसीद लें: खरीद पर हमेशा पक्की रसीद लें और उसे सुरक्षित रखें।
- जांच करें: खाद की बोरी पर आईएसआई मार्क, बैच नंबर, निर्माण तिथि और एक्सपायरी डेट की जांच करें। संदिग्ध लगने पर कृषि विभाग को सूचित करें।
- होलोग्राम/QR कोड: कुछ कंपनियों के उत्पादों पर होलोग्राम या QR कोड होते हैं, जिन्हें स्कैन करके उत्पाद की प्रामाणिकता जांची जा सकती है।
- संदिग्ध लगने पर सूचना दें: यदि आपको किसी खाद की गुणवत्ता पर संदेह हो या कोई डीलर संदिग्ध लगे, तो तुरंत स्थानीय कृषि अधिकारी या पुलिस को सूचित करें।
यह कार्रवाई बिहार में कृषि को बचाने और किसानों को ऐसे जालसाजों से बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उम्मीद है कि ऐसे सभी गोरखधंधों का पर्दाफाश होगा और किसानों को उनका हक मिलेगा, ताकि उनकी खून-पसीने की मेहनत पर कोई डाका न डाल सके और वे आत्मनिर्भर बन सकें।
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